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Apni Unki Baat

250.00

  • Publisher ‏ : ‎ Vani Prakashan; 2nd edition (1 January 2013); Vani Prakashan, Daryaganj, New Delhi
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Hardcover ‏ : ‎ 186 pages
  • ISBN-10 ‏ : ‎ 8181436776
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-8181436771
  • Item Weight ‏ : ‎ 350 g
  • Dimensions ‏ : ‎ 20.3 x 25.4 x 4.7 cm
  • Country of Origin ‏ : ‎ India
  • Importer ‏ : ‎ Vani Prakashan, Daryaganj, New Delhi
  • Packer ‏ : ‎ Vani Prakashan, New Delhi
Category: Product ID: 588

Description

अगर समकालीन परिदृश्य पर निगाह डालें तो संस्कृति और सािहत्य ही नहींए राजनीति में भी यह वर्तमान का अतीत द्वारा हैरतअंगेज अधिग्रहण का चिंताजनक परिदृश्य है। आलोचनाए कहानी और कविता में बीसवीं सदी के पचास.साठ.सत्तर के दशक की प्रवृत्तियाँ नए सिरे से प्रतिष्ठित और बलशाली हैं। आलोचना की प्रविधिए सैद्धांतिकी और अकादमिक शास्त्रीयता उस कहानी और कविता के अस्वीकार और अवमानना के लिए कृतसंकल्प हैं जिसमें उत्तर.औद्योगिक या नव औपनिवेशिक जीवन अनुभवों की नई सृजनात्मक संरचनाएँ उपस्थित हैं। जिस तरह समकालीन राजनीति समकालीन नागरिक जीवन के नए अनुभवों और नए संकटों के लिए फिलहाल अपने भीतर या तो कोई दबाव और चुनौती नहीं महसूस करती या फिर उनके दमनए नकार और उपेक्षा में ही अपने अस्तित्व की सुरक्षा देखती हैए लगभग वैसा का वैसा परिदृश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्रा में भी उपस्थित है। यह हिंदी आलोचना कविता और कथा का सबसे जर्जर और वृद्ध काल है। जो जितना जर्जर हैए वह उतना ही प्रासंगिकए सम्मानित और बलवान है। ऐसे में युवा और समकालीन सृजनशीलता के नाम पर जिस नए लेखन को प्रतिष्ठित किया जा रहा हैए अगर आप गौर से देखें तो उसका डीएनए साठ.सत्तर के दशक की प्रवृत्तियों का ही वंशज है। ये रचनाएँ आज के उद्भ्रांत और परिवर्तनशील समय में अतीत की प्रेत.अनुगूँजें हैंए जिनका संकीर्तन वे कर रहे हैंए जो अब स्वयं भूत हो चुके हैं। संक्षेप में कहें तो यह कि रिटायर्ड वैभवशालीए ऐय्याशए पाखंडी और अनैतिक राजनीतिकों और सांस्कृतिकों की आँख से आज का वह समूचा का समूचा समकालीन यथार्थ और जीवन गायब हैए जिसके संकटए सवालए अनुभव और संवेदना की नई महत्त्वपूर्ण और भविष्योन्मुखी रचनात्मक संरचनाएँ लगभग हाशिए में डाल दिए गए आज के नए लेखन में पूरे सामर्थ्य के साथ प्रकट हो रही हैं।

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